राजपूताने की वह पावन बलिदान-भूमि, विश्वमें इतना पवित्र बलिदान स्थल कोई नहीं । इतिहासके पृष्ठ रंगे हैं उस शौर्य एवं तेज़की भव्य गाथासे ।
मेवाड़के उष्ण रक्तने श्रावण संवत 1633 वि. में हल्दीघाटीका कण-कण लाल कर दिया । अपार शत्रु सेनाके सम्मुख थोड़े–से राजपूत और भील सैनिक कब तक टिकते ? महाराणाको पीछे हटना पड़ा और उनका प्रिय अश्व चेतक-उसने उन्हें निरापद पहुँचानेमें इतना श्रम किया कि अन्तमें वह सदाके लिये अपने स्वामीके चरणोंमें गिर पड़ा ।
Hinid Link : http://balsanskar.com/hindi/lekh/411.html
Marathi Link : http://balsanskar.com/marathi/lekh/107.html
English Link : http://balsanskar.com/english/lekh/2.html